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इस पत्रकार के ज़ज़्बे को सलाम !
-इमरान ज़हीर
अमूमन लोग किसी की मदद करने से हिचकते नज़र आते है । बहुत कम लोगों के मन में दूसरे के लिये सेवा करने का जज़्बा देखने को मिलता है और समाज की यही सच्चाई है । हर शहर में कोई न कोई मामला ऐसा सामने आ ही जाता है जब किसी ने किसी के लिए मदद का हाथ बढ़ाया हो । और अनेक मामले ऐसे भी मिलते है जिसमे लोग किसी की मदद करने से पीछे भी हट जाते है और जब मदद किसी को अपने खून से करनी हो तो अधिकतर लोग कोई न कोई बहाना बना कर चलते बनते है । हालाँकि किसी की जान बचाने से बढ़ कर बड़ा काम और क्या हो सकता है ।
आज हम एक ऐसे शख्स की बात कर रहे है जिसके ज़ज़्बे को हर कोई सलाम करना चाहेगा । एक खबर के सिलसिले में मुरादाबाद के एक पत्रकार शहर के जिला अस्पताल पहुचे थे । खबरो की तलाश में जब वो उस अस्पताल की तीसरी मंजिल पर पहुँचे तो एक बेड पर 60 वर्षीय बूढी माँ के पास उनकी दो बेटियां काफी परेशान सी नज़र आ रही थी इस पत्रकार ने जब उनसे पूछा की क्या मामला है क्यों इतनी परेशान है तो पास में बैठी दोनों बेटियों ने अपनी माँ की ज़िन्दगी को खतरे में बताया और अपनी मां की ज़िन्दगी बचाने के लिए कहीं से खून ना मिल पाने की बेबसी बयां कर रो पड़ी । उन बेटियों के आंसू ने इस पत्रकार को अंदर से झकजोर दिया । उनकी बेबसी देख कर इस पत्रकार की आँखे भी नम हो गई । फ़ौरन ही उन्होंने डॉक्टर को बुला कर अपना खून देने की बात की । इतना सुनते ही उस बूढी माँ के पास बैठी दोनों बेटियों की आँखों से पानी और बहने लगा, ये आंसू अपनी मां की ज़िन्दगी मिलने की ख़ुशी के साथ उस पत्रकार की दुआ बन कर निकल रहे थे । जैसे उन्हें कोई फरिश्ता मिल गया हो, उन बेटियों को इस दरियादिल पत्रकार भाई के पास उनकी माँ की ज़िन्दगी दिख रही थी । आपको बता दें मैं जिस पत्रकार की बात कर रहा हूँ उनका नाम मेहँदी अशरफी है जो शहर के एक बड़े समाचार पत्र में पत्रकार है । बहरहाल मेरे ये शब्द किसी एक तय शख्स की तारीफ के लिए नहीं वरन मैं हर उस शक्श के बारे में अपने विचार रखता हूँ जो वाकई में इसके काबिल होता है । मैं ऐसे लोगो के ज़ज़्बे को सलाम करता हूँ ।
Writer:imranzaheer(
2017-03-22
)
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